shayari लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
shayari लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 27 मार्च 2017

Ghazal | Urdu Shayari | Apni Palkon pe Koi Khwaab

Ghazal | Urdu Shayari | Apni Palkon pe Koi Khwaab

My latest ghazal published in 27/3/2016 issue of INQUILAB daily:

अपनी पल्कों पे कोई ख़्वाब सजा कर देखो
दिल में उम्मीद की इक शम्मा जला कर देखो

इस अंधेरे में भी हर सम्त उजाला होगा
अपने रुख़ से जरा चिलमन को हटा कर देख़ो

अपनी तस्वीर लगी पाओगे इक गोशे में
दिल की महफ़िल में अगर आज भी आ कर देखो

दिल पे जो बोझ है, कम उस को अगर करना है
हाले-दिल तुम किसी अपने को सुना कर देखो

दोस्तों से तो सभी खुल के मिला करते हैं
दुश्मनों को गले इक बार लगा कर देखो

अब तो नग़मों से भी तूफ़ान बपा होते हैं
गीत जोशीला कोई तुम भी तो गा कर देखो

राह फूलों से भरी तुम को मिलेगी 'शमसी'
ग़ैर की राह से कांटों को हटा कर देखो ।
---मुईन शमसी

रविवार, 12 जुलाई 2015

Ramzan Vidaai Song | Ramzaan Ja Riya Haiga

Ramzan Vidaai Song | Ramzaan Ja Riya Haiga

रमज़ान जारिया हैगा

उर्दू का हर कलन्डर, हमको बतारिया हैगा
रमज़ान जारिया हैगा, रमज़ान जारिया हैगा

ईदी मिलेगी तगड़ी, कपड़े बनंगे नै-नै
बच्चों का दिल हलक़ से, बाहरकू आरिया हैगा

जिसने रखे ना रोज़े, और ना पढ़ी तरावीह
वो भी फुदक-फुदक के, ख़ुशियां मनारिया हैगा

कुर्ता तो सिल गिया है, पर ना सिला पजामा
दर्ज़ी भी आज देखो, नख़रे दिखारिया हैगा

अफ़्तार जम के ठूंसा, सहरी दबाके पेली
अब दस किलो सिवईंयें, हर पेटू लारिया हैगा

देदे ज़कात बन्दे, नादार मुस्तहिक़ को
मिस्कीन-बे-कसों का, हक़ क्यूं दबारिया हैगा

तैयारी ईद की अब, तू भी तो कर ले ’शम्सी’
अशआर बेतुके ये, काएकू सुनारिया हैगा

---मुईन शम्सी

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

Dua | Prayer in Urdu | Tu kareem hai | दुआ | तू करीम है | By MOIN SHAMSI

Dua | Prayer in Urdu | Tu kareem hai | दुआ | तू करीम है | By MOIN SHAMSI

तू करीम है तो करम ये कर, मेरी ज़िंदगी तू सँवार दे
जोख़िज़ाँ के साए से दूर हो, मुझे ला-ज़वाल बहार दे

रहूँ जब तलक मैं जहान में, शब-ओ-रोज़ तेरा ही नाम लूँ 
कि जहां से जाऊँ मैं जब गुज़र, मेरी रूह को तू क़रार दे

है गिरा हुआ सजदे में ये बशर, करे तुझसे एक ही इल्तिजा
हो तेरा करम तो ये ज़िंदगी, यूँ ही नेकियों में गुज़ार दे

मेरे दिल में तेरा ही ख़ौफ़ है, मैं तो राह-ए-हक़ पे हूँ गामज़न
न रुकेंगे अब मेरे ये क़दम, कोई दर्द मुझको हज़ार दे

हो कभी जो ज़रूरत जान की, तो जुनून दिल में वो भर मेरे
कि ’मुईन’ अपनी ये जान भी, तेरे नाम पे ही निसार दे ।
(Poet : मुईन शमसी) (All rights are reserved)
( इस दुआ को मेरी आवाज़ में सुनने के लिये इस लिंक पर तशरीफ़ ले जाएं :
-------------------------------------------------------
Tu kareem hai to karam yeh kar, 
meri zindgi tu sanwaar de

jo khizaaN ke saaye se door ho,
 mujhe laa-zawaal bahaar de

rahoon jab talak main jahaan me, 
shab-o-roz tera hi naam loon

ki jahaaN se jaaun main jab guzar,
 meri rooh ko tu qaraar de

hai gira hua sajde me yeh bashar,
 kare tujhse ek hi iltija

ho tera karam to yeh zindgi, 
yoon hi nekiyon men guzaar de

mere dil me tera hi khauf hai,
 main to raah-e-haq pe hoon gaamzan

na rukenge ab mere ye qadam, 
koi dard mujhko hazaar de

ho kabhi jo zaroorat jaan ki, 
to junoon dil me wo bhar mere

ki 'Moin' apni ye jaan bhi,
 tere naam pe hi nisaar de.
(Poet : Moin Shamsi) (All Rights Are Reserved)


मंगलवार, 12 जुलाई 2011

Romantic Shayari - Barsat ki Ghazal - in Hindi | ग़ज़ल | वस्ल की ख़्वाहिश

Romantic Shayari - Barsat ki Ghazal - in Hindi | ग़ज़ल | वस्ल की ख़्वाहिश

बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है 
इक आग दो दिलों के, अंदर भड़क रही है 

 मस्ती भरी हवा है, मख़मूर सी फ़ज़ा है
धरती की सोंधी ख़ुशबू, हर-सू महक रही है 

 वो दिलरुबा जो अरसा, ओढ़े रही ख़मोशी 
चिड़िया-सी आज देखो, कैसी चहक रही है 

 दिल मेरा कह रहा है, कुछ आज हो रहेगा 
ये आँख है कि कब से, रह-रह फड़क रही है 

 तू मेरे सामने है, मैं तेरे सामने हूँ 
दोनों की आज धड़कन, सुर में धड़क रही है 

 तारीक रात भी है, और तेरा साथ भी है 
मैं भी बहक रहा हूँ, तू भी बहक रही है 

 अब वस्ल की है ख़्वाहिश, चेहरे से ये अयाँ है
 सूरत हसीन उनकी, ’शम्सी’ दमक रही है ।
( Poet : मुईन शमसी ) (All rights are reserved)

अल्फ़ाज़-ओ-मानी: 
वस्ल = मिलन, ख़्वाहिश = इच्छा, मख़मूर = नशीली, फ़ज़ा = वातावरण, अरसा = लम्बे समय तक, ख़मोशी = ख़ामोशी, तारीक = अंधेरी, अयाँ = स्पष्ट 

To Listen this poem, visit : 


 BAADAL GARAJ RAHE HAIN, BIJLI KADAK RAHI HAI 
IK AAG DO DILON KE, ANDAR BHADAK RAHI HAI 

 MASTI BHARI HAWA HAI, MAKHMOOR SI FAZAA HAI
DHARTI KI SONDHI KHUSHBU, HAR-SOO MAHAK RAHI HAI 

 WO DILRUBA JO ARSAA, ODHEY RAHI KHAMOSHI
 CHIDIYAA-SI AAJ DEKHO, KAISI CHAHAK RAHI HAI

 DIL MERA KEH RAHA HAI, KUCHH AAJ HO RAHEGAA 
YE AANKH HAI KE KAB SE, REH-REH PHADAK RAHI HAI

 TU MERE SAAMNE HAI, MAIN TERE SAAMNE HU
 DONO KI AAJ DHADKAN, SUR ME DHADAK RAHI HAI

 TAAREEK RAAT BHI HAI, AUR TERA SAATH BHI HAI
 MAIN BHI BAHAK RAHA HU, TU BHI BAHAK RAHI HAI

 AB WASL KI HAI KHWAAHISH, CHEHRE SE YE AYAAN HAI
 SOORAT HASEEN UNKI, 'SHAMSI' DAMAK RAHI HAI.
 ( Poet : MOIN SHAMSI ) (All rights are reserved)

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

Talli Ghazal - टल्ली ग़ज़ल | Mast Ghazal

Talli Ghazal - टल्ली ग़ज़ल - Mast Ghazal

अपना हर इक यार तो खाया-खेला लगता है,
माल मेरा कटता, उनका ना धेला लगता है ।

जितने पियक्कड़ फ़्रैंड्स हैं डेली आन धमकते हैं,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है ।

बेटी तो अंगूर की घर के अंदर मिलती है,
अंडों और नमकीन का बाहर ठेला लगता है ।

खोल के बोतल सीधे दारू ग़ट-ग़ट पीते हैं,
पैग, गिलास और पानी एक झमेला लगता है ।

दबा के पीकर हो के टल्ली डोला करते हैं,
उनमें से हर एक बड़ा अलबेला लगता है ।

मना करे जो पी के ऊधम उन्हें मचाने से,
झूमते उन सांडों को बहुत सड़ेला लगता है ।

खोल के घर में मयख़ाना ख़ुद पीता है लस्सी,
भीड़ है फिर भी ’शमसी’ बहुत अकेला लगता है ।
---मुईन शमसी (All rights reserved) 

To listen this ghazal, click here : 


सोमवार, 24 जनवरी 2011

Hindi Ghazal | Deshbhakti Poetry | देशभक्ति-ग़ज़ल | Patriotic Ghazal - (All rights reserved)

Hindi Ghazal - देशभक्ति-ग़ज़ल

देश के कण-कण से और जन-जन से मुझको प्यार है 

देश-सेवा के लिये तन-मन सदा तैयार है ।


ईद दीवाली बड़ा-दिन होली और गुरु का परब 

याँ बड़े सौहार्द से मनता हर-इक त्योहार है ।


अपने भारत में नहीं है कोई प्रतिभा की कमी 

तथ्य ये स्वीकारता सम्पूर्ण ही संसार है ।


हिंद में लेकर जनम जो हिंद की खोदे जड़ें 

ऐसे लम्पट-धूर्त पे सौ-सौ दफ़ा धिक्कार है ।


करके भ्रष्टाचार जो जेबों को अपनी भर रहा

 देश का दुश्मन है वो सबसे बड़ा ग़द्दार है ।


इक तरफ़ उपलब्ध रोटी है नहीं दो-जून की

 इक तरफ़ बर्बाद होता अन्न का भण्डार है ।


आज ’शमसी’ है किसे चिंता यहां कर्तव्य की 

जिसको देखो, मुंह उठाए मांगता अधिकार है ।

(All rights are reserved with the poet Moin Shamsi)

इस देशभक्ति-ग़ज़ल को सुनने के लिये लिंक : 

https://youtu.be/Bz4Ju8rJcYE 



बुधवार, 5 जनवरी 2011

ग़ज़ल - मादर-ए-वतन | Urdu Shayari | Ghazal

ग़ज़ल - मादर-ए-वतन - Urdu Shayari

हिन्दू है जिसका जिस्म, मुसलमान जान है
वो मादर-ए-वतन मेरी, जग में महान है ।

परचम में तीन रंग हैं तीनों बड़े अहम
लहरा रहा है देखिये क्या इसकी शान है !

घुलती है शाम-ओ-सुब्ह कोई मिसरी सी कान में
बजती हैं घंटियां कहीं होती अज़ान है ।

रक्षा को अपने हिन्द की सीमा पे सब खड़े
कोई है शेर सिंह कोई शेर ख़ान है ।

माटी से अपने देश की सोना निकालता
भारत की जग में शान बढ़ाता किसान है ।

अपने वतन से प्यार करो उसके हो रहो
कहते यही हैं वेद यह कहता क़ुरान है ।

जाना है जिसको जाए वो अमरीका-ओ-दुबई
’शमसी’ को तो अज़ीज़ यह हिंदोस्तान है ।
Poet : Moin Shamsi (All rights reserved)

( You can listen to this ghazal through this link : 


सोमवार, 27 सितंबर 2010

तुम चले क्यों गए | A song written by MOIN SHAMSI | Tm Chale Kyon Gaye

तुम चले क्यों गये

मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के तुम चले क्यों गये

तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया

ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया

मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर

इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया।

फिर कहो तो भला

मेरी क्या थी ख़ता

मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के ,तुम चले क्यों गये

साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ

जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ

मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों

मिट चुका था मेरे ग़म का नामो-निशाँ।

फिर ये कैसा सितम

क्यों हुए बेरहम

दर्द दिल में उठा के, मुझे ऐसे रुला के तुम चले क्यों गये

तुम चले क्यों गये

तुम चले क्यों गये?

शब्दार्थ: परवाज़ = उड़ान रग-रग = नस-नस लबरेज़ = भरा हुआ 

इस रचना को सुनना चाहें, तो इस लिंक पर पधारें : 

https://youtu.be/AhYHyOTzMSw

( मेरी इस रचना के सभी अधिकार मेरे पास हैं : मुईन शम्सी )