तुम चले क्यों गये
मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के तुम चले क्यों गये
तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया
ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया
मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर
इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया।
फिर कहो तो भला
मेरी क्या थी ख़ता
मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के ,तुम चले क्यों गये
साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ
जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ
मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों
मिट चुका था मेरे ग़म का नामो-निशाँ।
फिर ये कैसा सितम
क्यों हुए बेरहम
दर्द दिल में उठा के, मुझे ऐसे रुला के तुम चले क्यों गये
तुम चले क्यों गये
तुम चले क्यों गये?
शब्दार्थ: परवाज़ = उड़ान रग-रग = नस-नस लबरेज़ = भरा हुआ
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( मेरी इस रचना के सभी अधिकार मेरे पास हैं : मुईन शम्सी )
Ummda janab
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत 'उम्दा।
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