और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
आपने यह लाइन अनेक बार सुनी, पढ़ी और शायद बोली भी होगी। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि यह लाइन ग़लत है? यस, यह लाइन ग़लत है।
अस्ल में, एक बड़े मशहूर शाइर हुए हैं - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़। उनकी अनेक बेहद मशहूर कविताओं (नज़्मों) में से एक है - मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग। ऊपर दी गई लाइन इसी कविता से ली गई है। लेकिन ग़लत है और ग़लती सिर्फ़ यह है कि मूल कविता में इस लाइन में ग़म शब्द नहीं है बल्कि दुःख शब्द है। मूल पंक्ति और उसकी अगली पंक्ति देखिए :
और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवाराहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
इन लाइनों में कुछ शब्द ऐसे हैं जो अनेक लोगों को परेशान करते हैं, क्योंकि उनको इनका अर्थ नहीं मालूम होता है। ये शब्द हैं ज़माना, सिवा, वस्ल, और राहत। इनके अर्थ जान लीजिए :
ज़माना - दुनिया
सिवा - अलावा
वस्ल - मिलन
राहत - चैन
और अधिक जानकारी (शुद्ध उच्चारण सहित) के लिए आप यह छोटा-सा विडियो देख सकते हैं :
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