गुरुवार, 14 जुलाई 2011

Short Story | In Hindi | लघुकथा | Santosh


Short Story | In Hindi | लघुकथा | Santosh

(मेरी यह लघुकथा ’अमर उजाला - कॉम्पैक्ट’ के 20 मई 2011 के अंक में’ "खुला पन्ना" खण्ड में प्रकाशित हुई)

चीं चीं चीं !!! अचानक कई चिड़ियों की आवाज़ एकसाथ सुनाई पड़ी । ऑफ़िस जाने के लिये घर से निकलते ही ठिठक कर रुक गया ’वह’ । सामने ख़ून से लथपथ एक गौरैया का बच्चा पड़ा था । पंख-विहीन... चिकनी... स्पष्ट दिखती त्वचा ! शरीर पर रोयां भी नहीं ! नवजात जो ठहरा ! एक आवारा कुत्ता उसे उलट-पलट रहा था । वह निरीह शिशु अपना पूरा मुंह खोलकर मानो सहायता की गुहार लगा रहा था । आवारा कुत्ते ने उसे अपने मुंह में ले लिया । ’वह’ कुत्ते को ऐसा करते देख रहा था । क्षणभर को उसने सोचा कि ’चलो छोड़ो’ । अगले ही पल कुत्ते ने बच्चे को वापस ज़मीन पर फेंक दिया । बच्चा बिना आवाज़ किये छटपटाने लगा । तभी ’उस’ की नज़र पास पड़े घोंसले पर पड़ी । कुत्ता अब घोंसले को टटोल रहा था क्योंकि उस घोंसले में भी कुछ बच्चे थे । अचानक ’उस’ की इंसानियत जाग उठी । तुरंत कुत्ते को दौड़ा दिया दूर तक ! घायल बच्चे को उठाकर घोंसले में रखा और और फिर बच्चों समेत घोंसला उठाकर ऊंचे सुरक्षित स्थान पर रख दिया । चिड़ियां अब भी मिलकर शोर कर रही थीं । किंतु अब उनके शोर का अर्थ बदला सा लगा उसे । मानो धन्यवाद दे रही हों ! वह चल पड़ा । चेहरे पर एक अपूर्व संतोष लिये ।
---मुईन शमसी 

इस कहानी को सुनने के लिए इस लिंक पर पधारें : 

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

Romantic Shayari - Barsat ki Ghazal - in Hindi | ग़ज़ल | वस्ल की ख़्वाहिश

Romantic Shayari - Barsat ki Ghazal - in Hindi | ग़ज़ल | वस्ल की ख़्वाहिश

बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है 
इक आग दो दिलों के, अंदर भड़क रही है 

 मस्ती भरी हवा है, मख़मूर सी फ़ज़ा है
धरती की सोंधी ख़ुशबू, हर-सू महक रही है 

 वो दिलरुबा जो अरसा, ओढ़े रही ख़मोशी 
चिड़िया-सी आज देखो, कैसी चहक रही है 

 दिल मेरा कह रहा है, कुछ आज हो रहेगा 
ये आँख है कि कब से, रह-रह फड़क रही है 

 तू मेरे सामने है, मैं तेरे सामने हूँ 
दोनों की आज धड़कन, सुर में धड़क रही है 

 तारीक रात भी है, और तेरा साथ भी है 
मैं भी बहक रहा हूँ, तू भी बहक रही है 

 अब वस्ल की है ख़्वाहिश, चेहरे से ये अयाँ है
 सूरत हसीन उनकी, ’शम्सी’ दमक रही है ।
( Poet : मुईन शमसी ) (All rights are reserved)

अल्फ़ाज़-ओ-मानी: 
वस्ल = मिलन, ख़्वाहिश = इच्छा, मख़मूर = नशीली, फ़ज़ा = वातावरण, अरसा = लम्बे समय तक, ख़मोशी = ख़ामोशी, तारीक = अंधेरी, अयाँ = स्पष्ट 

To Listen this poem, visit : 


 BAADAL GARAJ RAHE HAIN, BIJLI KADAK RAHI HAI 
IK AAG DO DILON KE, ANDAR BHADAK RAHI HAI 

 MASTI BHARI HAWA HAI, MAKHMOOR SI FAZAA HAI
DHARTI KI SONDHI KHUSHBU, HAR-SOO MAHAK RAHI HAI 

 WO DILRUBA JO ARSAA, ODHEY RAHI KHAMOSHI
 CHIDIYAA-SI AAJ DEKHO, KAISI CHAHAK RAHI HAI

 DIL MERA KEH RAHA HAI, KUCHH AAJ HO RAHEGAA 
YE AANKH HAI KE KAB SE, REH-REH PHADAK RAHI HAI

 TU MERE SAAMNE HAI, MAIN TERE SAAMNE HU
 DONO KI AAJ DHADKAN, SUR ME DHADAK RAHI HAI

 TAAREEK RAAT BHI HAI, AUR TERA SAATH BHI HAI
 MAIN BHI BAHAK RAHA HU, TU BHI BAHAK RAHI HAI

 AB WASL KI HAI KHWAAHISH, CHEHRE SE YE AYAAN HAI
 SOORAT HASEEN UNKI, 'SHAMSI' DAMAK RAHI HAI.
 ( Poet : MOIN SHAMSI ) (All rights are reserved)

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

Ghazal for Communal Harmony | ग़ज़ल - "आओ मिलजुल के" | Deshbhakti Poem

To listen this deshbhakti ghazal, visit here: 


आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए
आपसी प्रेम की इक रस्म चलाई जाए ।

नफ़रतों का ये शजर अब है बहुत फैल चुका
अब तो उल्फ़त की कोई बेल लगाई जाए ।

दोनों जानिब से ही इस आग ने घी पाया है
दोनों जानिब से ही ये आग बुझाई जाए ।

तलख़ियां भूल के माज़ी की, गले लग जाएं
दूरी बरसों से बनी है जो, मिटाई जाए ।

जाहिलिय्यत के अंधेरों को मिटाने के लिये
हर तरफ़ इल्म की इक शम्मा जलाई जाए ।

जो मदरसे में हैं तलबा, वो पढ़ें संसकिरित
और उर्दू ’शिशु-मंदिर’ में पढ़ाई जाए ।

छोड़ के मंदिर-ओ-मस्जिद के ये झगड़े ’शमसी’
एक हो रहने की सौगंध उठाई जाए ।
( रचयिता: मुईन शमसी ) ( All rights are reserved )

Meanings :
Shajar - पेड़, Ulfat - प्रेम, Jaanib - ओर, Talkhiyaan - कड़वाहटें, Maazi - भूतकाल, Jaahiliyyat - अज्ञानता, Ilm - शिक्षा, Talabaa - छात्र, Sanskirit - संस्कृत ।


AAO MILJUL KE KOI BAAT BANAAI JAAYE
AAPASI PREM KI IK RASM CHALAAI JAAYE.

NAFRATON KA YE SHAJAR AB HAI BAHUT PHAIL CHUKA
AB TO ULFAT KI KOI BEL LAGAAI JAAYE.

DONON JAANIB SE HI ISS AAG NE GHEE PAYA HAI
DONO JAANIB SE HI YE AAG BUJHAAI JAAYE.

TALKHIYAAN BHOOL KE MAAZI KI, GALEY LAG JAAYEN
DOORI BARSON SE BANI HAI JO, MITAAI JAAYE.

JAAHILIYYAT KE ANDHERON KO MITAANE KE LIYE
HAR TARAF ILM KI IK SHAMMA JALAAI JAAYE.

JO MADARSE ME HAIN TALABAA WO PADHEN SANSKIRIT
AUR URDU 'SHISHU-MANDIR' ME PADHAAI JAAYE.

CHHOD KE MANDIR-O-MASJID KE YE JHAGDEY 'SHAMSI'
EK HO REHNE KI SAUGANDH UTHHAAI JAAYE.

(POET: MOIN SHAMSI) (All rights are reserved)