सोमवार, 16 मई 2011

Fox and Crow story in Hindi - कव्वा और लोमड़ी | Story Poem

Fox and Crow story in Hindi - कव्वा और लोमड़ी - Story Poem


To listen this story, visit here : 

https://youtu.be/y3wXWmWrR8Q 

To know the meanings and pronunciation of the difficult Urdu words used in this poem, visit here : 

https://youtu.be/PgpAySj94yc 


एक दिन की बात है इक कव्वा था भूका बड़ा,,

सुबहा से इक भी न दाना पेट में उसके पड़ा ।


ढूंढने खाने की अशया घूमता था दर-ब-दर,,

तब यकायक एक शय पर उसकी जा पहुंची नज़र ।


पास जाकर देखने से भूक उसकी बढ़ गई,,

एक रोटी थी रखी जो घी में थी चुपड़ी हुई ।


एक लम्हा देर की ना रोटी पकड़ी चोंच में,,

’बैठकर किस जगहा खाऊं’ वो लगा ये सोचने ।


शाख़ पे इक पेड़ की ऊंचे, पड़ी उसकी नज़र,,

थी मुनासिब जगहा फ़ौरन उड़ के पहुंचा डाल पर ।


देर कुछ भी ना हुई थी उसको बैठे पेड़ पे,,

चलते-चलते लोमड़ी इक ठहरी उसको देख के ।


घी लगी रोटी को देखा मुंह में पानी आ गया,,

रूखा-सूखा खा के उसका जी भी था उकता गया ।


राल टपकाते हुए वो सोचने तब ये लगी,,

’काश मिल जाए मुझे ये रोटी जो है घी भरी’ ।


’है मगर दुशवार रोटी करना हासिल कव्वे से,,

बेवक़ूफ़ इसको बनाऊं अक़्ल के इक जलवे से’ ।


सोच के तरकीब इक वो कव्वे की जानिब गई,,

और फिर शीरीं ज़बां से उससे ये कहने लगी :


"कव्वे भाई कव्वे भाई, तुमको कुछ मालूम है?,,

शक्ल है भोली तुम्हारी और बड़ी मासूम है ।"


बात उसकी सुनके कव्वा खाते-खाते रुक गया,,

चोंच में रोटी दबाए देखने उसको लगा ।


जब न खोला उसने मुंह तो लोमड़ी कहने लगी,,

"कव्वे भाई, बात मेरी ग़ालिबन समझे नहीं ।"


फिर भी कव्वा चुप रहा बोला नहीं इक लफ़्ज़ भी,,

देख के उसकी ख़मोशी लोमड़ी कहने लगी :


"कव्वे भाई, ये तुम्हारे पर भी कितने ख़ूब हैं,,,

जो भी देखे उसको भाएं तुम से ये मन्सूब हैं ।


प्यारे-प्यारे काले-काले हैं ये चमकीले बड़े,,

देखने वाले कई हैं इश्क़ में इनके पड़े ।


यूं तो जंगल में परिंदे उड़ते फिरते हैं कई,,

ख़ूबसूरत इतने लेकिन पर किसी के हैं नहीं ।"


इतना कह के चुप हुई कुछ देर को वो लोमड़ी,,

दिल ही दिल में इस तरह कुछ अपने थी वो सोचती ।


’बस ज़रा सा खोल दे मुंह और कव्वा कुछ कहे,,

मुंह में रख कर भाग जाऊं जैसे ही रोटी गिरे ।’


लोमड़ी के दिल की हसरत पूरी ना उस दम हुई,,

ख़ुश तो कव्वा हो गया लेकिन रहा ख़ामोश ही ।


लोमड़ी हिम्मत न हारी एक कोशिश और की,,

मुस्कुरा के इक अदा से कव्वे से कहने लगी :


"कव्वे भाई, बात का मेरी ज़रा कर लो यक़ीं,,

एक ख़ूबी और तुम में है जो औरों में नहीं ।


सच मैं कहती हूं ज़रूरत झूट की क्या है भला,,

सब से ज़्यादा है सुरीला बस तुम्हारा ही गला ।


तुम तरन्नुम में हो गाते, क्या तुम्हारी शान है !,,

वाक़ई तुम को सुरों की पूरी ही पहचान है ।


’कांव’ की मीठी सदा जब छेड़ देते हो कभी,,

छोड़ के सब काम अपने, सुनने लगते हैं सभी ।"


इस क़दर तारीफ़ सुन के कव्वा चुप ना रह सका,,

खोल के मुंह "शुक्रिया प्यारी बहन" कहने लगा ।


ज्यों ही मुंह कव्वे ने खोला, रोटी नीचे आ गई,,

लोमड़ी तो ताक में थी, झट उठा के खा गई ।


घी लगी रोटी को खा के इक डकार उसने लिया,,

इक लगाया क़हक़हा और कव्वे से कुछ यूं कहा :


"तुम से बढ़ कर बेवक़ूफ़ इस दुनिया में कोई नहीं,,

मैं चली, अब ’कांओं-कांओं’ करते बैठो तुम यहीं ।"


इतना कह के लोमड़ी तो घर को अपने चल पड़ी,,

बेवक़ूफ़ी पड़ गई कव्वे को वो महंगी बड़ी ।

---मुईन शमसी (All Rights Are Reserved)



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