गुरुवार, 9 जून 2011

Hindi Kavita | Poem in Hindi | Vyatha | by Moin Shamsi

मेरी यह कविता सुनना चाहें तो इस लिंक को खोलें :

अपने मन की व्यथा 
मैं नहीं कह सका 
बस यह सोचा किया 
वह समझ जाएगा 
प्रेम करता ही है 
मुझ पे मरता ही है  
मुझको चिंता ही क्या ! 

दिन गुज़रते गए 
दर्द बढ़ता गया 
टीस हद से बढ़ी 
मन तड़पने लगा 

इक दिवस ठान ली 
आज कह डालूँगा 

कह भी देता, अगर 
यह न मिलती ख़बर 
'वह पराया हुआ 
वह कहीं जा चुका' 

काश मिल जाए वो 
सिर्फ़ इक बार को 
उससे कह दूँ मैं बस 
"तुम सदा ख़ुश रहो, 
तुम सदा ख़ुश रहो,
तुम सदा ख़ुश रहो" 
(कवि : मुईन शम्सी)


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