सोमवार, 16 मई 2011

Birds Story - परिंदे कितने - Story For Children - Hindi - Urdu

Birds Story - परिंदे कितने - Story For Children - Hindi - Urdu


To listen this story, visit this link : 

https://youtu.be/-ADUbu8NZTw

To know the meanings of the difficult Urdu words, visit : 

https://youtu.be/0_MVSehqRug


बैठे-बैठे एक दिन सोचा ये इक सुल्तान ने

’सल्तनत में हैं परिंदे कितने, क्यों ना जान लें !’


बस उसी लम्हा वज़ीर-ए-ख़ास को बुलवा लिया

और फिर सुल्तान ने कुछ इस तरह उस से कहा


"है हमारी सल्तनत में लोगों की तादाद क्या

जानते हैं बात ये तो हम बहुत अच्छी तरह


कितनी नदियां, कितने कूएं और कितने हैं तलाब

ये भी है हमको पता, रक्खा हुआ है सब हिसाब


बात इक लेकिन है ऐसी जो नहीं हमको पता"

सर वज़ीर-ए-ख़ास ने ख़म करके पूछा, "वो है क्या?"


इक अदा-ए-बादशाही से कहा सुल्तान ने

"ऐ वज़ीर-ए-ख़ास, इस पर आप फ़ौरन ध्यान दें


सल्तनत में कुल परिंदे जितने भी आबाद हैं

जानना चाहते हैं हम ये, उनकी क्या तादाद है


तुम अभी फ़ौरन ही जाओ, और करो जाकर पता

तीन दिन के अंदर-अंदर हम को देना तुम बता


और अगर तादाद उनकी तुम नहीं बतला सके

सूली पे फिर तो यक़ीनन हम चढ़ा देंगे तुम्हें !"


"ठीक है" कहकर वज़ीर-ए-ख़ास ने सर ख़म किया

काम था लेकिन बड़ा मुश्किल, जो सुल्तां ने दिया


सोचता था वो कि ’किस तरहा से ये गिनती करूं

ये नहीं मुमकिन मगर सुल्तान से कहते डरूं


इसको ’ना’ सुनने की आदत तो ज़रा भी है नहीं

’ना’ अगर मैंने कहा तो जां से ना जाऊं कहीं ।’


सोचकर ये सब वज़ीर-ए-ख़ास उलझन में पड़ा

वाक़ई गिनना परिंदों का तो था मुश्किल बड़ा


आख़िर उसको सूझी इक तरकीब, उसने यूं किया

तीन दिन के वास्ते दरबार से ग़ायब हुआ


तीन दिन के बाद जब हाज़िर हुआ दरबार में

शक्ल उसकी डूबी लगती थी किसी असरार में


बा-अदब हो कर वो ये सुल्तान से कहने लगा

"सल्तनत में हैं परिंदे जितने, सब को गिन लिया ।"


बात ये सुल्तान सुन कर ख़ुश बड़ा ही हो गया

हँस के बोला "तुम गिनोगे, मुझ को ये मालूम था


अब ज़रा जल्दी बता दो कितनी कुल तादाद है

उन परिंदों की, कि जिनसे सल्तनत आबाद है ।"


"जो हुकम" कहकर वज़ीर-ए-ख़ास बतलाने लगा

सब परिंदों की वो गिनती उसको गिनवाने लगा


"सब परिंदों का है मेरे पास आदाद-ओ-शुमार

मोर हैं छब्बीस सौ और तोते पैंतालिस हज़ार


कुल कबूतर साठ हज़ार और मैना छ: सौ आठ हैं

सत्रह सौ अस्सी हैं कव्वे, बुलबुलें बस साठ हैं


फ़ाख़्ता ग्यारह सौ नव्वे, उल्लू लेकिन तीस हैं

कोयलें उन्नीस सौ, हुदहुद तो दो सौ बीस हैं


गिद्ध इक्किस सौ बयालिस, चीलें हैं तेरह सौ नौ

और अबाबीलों की गिनती इक हज़ार और पांच सौ ।"


सारी गिनती सुन के वो सुल्तान ये कहने लगा

"जांच करवाएंगे गिनती की, ये तुम सुन लो मियां !


और ज़रा सा फ़र्क़ भी गिनती में गर हमको मिला

तुम को बख़्शेंगे नहीं तब, सख़्त देंगे हम सज़ा ।"


तब वज़ीर-ए-ख़ास बोला, "बात ऐसी है हुज़ूर

जांच तो गिनती की मेरी, आप करवाएं ज़रूर


गिनती लेकिन आज की है, एक मुश्किल आएगी

कल यक़ीनन गिनती ये तब्दील हो ही जाएगी


कुछ परिंदे उड़ के जाएंगे कहीं, कुछ आएंगे

और कुछ पैदा भी होंगे, कुछ तो मर भी जाएंगे ।"


सुन के ये सुल्तान वो, ख़ामोश कुछ लम्हे हुआ

फिर यकायक हँस के वो कुछ इस तरह कहने लगा


"अक़्लमंदी को तुम्हारी हम तो करते हैं सलाम

पांच सौ सोने के सिक्कों का तुम्हें देंगे इनाम ।"


अक़्लमंदी का वज़ीर-ए-ख़ास को देखो सिला

चमचमाते सोने के सिक्कों की सूरत में मिला ।

(Poet - मुईन शमसी) (All rights reserved)



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