दशहरा ग़ज़ल
इस बार दशहरे पे नया काम हम करें,
रावण को अपने मन के चलो राम हम करें ।
दूजे के घर में फेंक के पत्थर, लगा के आग,
मज़हब को अपने-अपने न बदनाम हम करें ।
उसका धरम अलग सही, इन्सान वो भी है,
तकलीफ़ में है वो तो क्यूं आराम हम करें ।
माज़ी की तल्ख़ याद को दिल से निकाल कर,
मिलजुल के सब रहें, ये इन्तिज़ाम हम करें ।
अपने किसी अमल से किसी का न दिल दुखे,
जज़बात का सभी के अहतराम हम करें ।
अब मुल्क में कहीं भी न दंगा-फ़साद हो,
बस प्यार-मुहब्बत की रविश आम हम करें ।
’शम्सी’ मिटा के अपने दिलों से कदूरतें,
शफ़्फ़ाफ़ ख़यालों का अहतमाम हम करें ।
(Poet : Moin Shamsi)
(All Rights Are Reserved)
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waah ji!!!
जवाब देंहटाएंkamaal hain aap....!!
badhaaeee!!! moin ji...
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