मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

DASHAHRA GHAZAL | दशहरा ग़ज़ल | Urdu Ghazal in Hindi

दशहरा ग़ज़ल 

इस बार दशहरे पे नया काम हम करें, 
रावण को अपने मन के चलो राम हम करें । 

 दूजे के घर में फेंक के पत्थर, लगा के आग, 
मज़हब को अपने-अपने न बदनाम हम करें । 

 उसका धरम अलग सही, इन्सान वो भी है, 
तकलीफ़ में है वो तो क्यूं आराम हम करें । 

 माज़ी की तल्ख़ याद को दिल से निकाल कर, 
मिलजुल के सब रहें, ये इन्तिज़ाम हम करें । 

 अपने किसी अमल से किसी का न दिल दुखे, 
जज़बात का सभी के अहतराम हम करें । 

 अब मुल्क में कहीं भी न दंगा-फ़साद हो, 
बस प्यार-मुहब्बत की रविश आम हम करें । 

 ’शम्सी’ मिटा के अपने दिलों से कदूरतें, 
शफ़्फ़ाफ़ ख़यालों का अहतमाम हम करें ।
(Poet : Moin Shamsi) 
(All Rights Are Reserved) 
इस ग़ज़ल में आए हुए कठिन शब्दों के अर्थ जानने और इस ग़ज़ल को सुनने के लिए इस लिंक पर तशरीफ़ लाएं : 


शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

Shayari - kyu hai -Urdu ki hit Ghazal | Communal Harmony Poetry

सबके होते हुए वीरान मेरा घर क्यूं है,
इक ख़मोशी भरी गुफ़्तार यहां पर क्यूं है !

एक से एक है बढ़कर यहां फ़ातेह मौजूद,
तू समझता भला ख़ुद ही को सिकन्दर क्यूं है !

वो तेरे दिल में भी रहता है मेरे दिल में भी,
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मन्दर क्यूं है !

सब के होटों पे मुहब्बत के तराने हैं रवाँ,
पर नज़र आ रहा हर हाथ में ख़न्जर क्यूं है !

क्यूं हर इक चेहरे पे है कर्ब की ख़ामोश लकीर,
आंसुओं का यहां आंखों में समन्दर क्यूं है !

तू तो हिन्दू है मैं मुस्लिम हूं ज़रा ये तो बता,
रहता अक्सर तेरे कांधे पे मेरा सर क्यूं है !

काम इसका है अंधेरे में दिया दिखलाना,
राह भटका रहा ’शम्सी’ को ये रहबर क्यों है !
(Poet : Moin Shamsi) 
(All Rights Are Reserved) 
अगर आप इस ग़ज़ल को सुनना चाहें, तो यहाँ क्लिक करें : https://youtu.be/ipa13AoN8eM